People at funeral say "Acha Aadmi Tha". Mujhe to poora yakeen hai ki haan wo ache aadmi the. Pr yakeen aur maanne me to zameen aasman ka farak nhi sirf ek dhaage bhar ka farak hota hai... dhaage ki chor tooti to wo dil ka rishta kha mazboot hota hai...
So today my poem only depicts that difference.
अच्छा आदमी था
वो बहुत अच्छा आदमी था
ये बात तुमने कह दी यकीन से
या अंदाज़े पर
अब कुछ ना कुछ तो कहना बनता था ना
उसके जनाजे पर
नहीं कहते तो यह जमाना तुम्हारी अच्छाई पर शक कर लेता
अगर वो सुनता ना तो खुशी के मारे पागल ही हो जाता
खैर ये बताओ अगर अच्छा ही था तो
अच्छे पन का हिसाब क्यों नहीं दिया
रोज़ कुछ पूछ तो रहा था ना वो
कभी सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया
वो जब गुमसुम बैठकर पूछता अपनेसे कि जिंदगी में कुछ बाकी रहेगा या नहीं
तो फिर तुम हंसकर कह देते ना उससे कि
यार तू उसके सिवा कुछ और कहेगा या नहीं
काश के हंसी ठहाके सिलसिले को तोड़ कर देखा होता
काश के जितने बार उसे अलविदा कहा
उसी रास्ते पर रुक के पीछे मुड़कर देखा होता
तो जानते कि तुमसे मिलने के बाद वह कभी अपने बारे में सोचता ही नहीं था
उसके चेहरे से नाराज़गी का असर नहीं गया था
वही अपनी गाडी में बस अपने फोन को लेकर बैठ जाया करता था
अपनी टेंसन छुपाए आते जाते मुसाफिरों से रूठ जाया करता था
तुम जानते थे ना कि वह हम सब से प्यार कर भी बातों पर नाराज़ हो जाया करता था
पर क्या यह जानते हो कि अकेले पलंग पर लेटे अपने घर में पंखों दीवारों को घूरता रहता था
कहा तो था उसने कि मिलो, मुलाकातें करनी है
जो किसी से नहीं कहीं, तुमसे बातें करनी है
और तुम सोचते थे कि वो तो मज़बूत है हालातों को संभाल ही लेंगे
रुख को मोड़कर आगे बड़ ही लेंगे
पर वो तुम्हारी चीजों को पढ़कर सोचता होगा
कि एक मेरे पास ही हंसने की हसरत क्यों नहीं है
इस जिंदगी में मेरे सिवा ही किसी को मेरी जरूरत क्यों नहीं है
जरूरत है उसकी
ज़रूरत है__ काश उसे एहसास दिला दिया होता
अपनी ज़रूरत छोड़ उसकी ज़रुरत में काम आलिया होता
बिना वजह गले लगा कर पास बैठा लिया होता
काश जानते कि हर रोज वह भोजा ढोया करता था
काश समझते क्यों बोलते बोलते वो खामोश कैसे हो जाया करता था
काश की उसके लिए ही उससे लड़ लिया होता उसकी कामियाबी से ज्यादा उसके दिल को पढ़ लिया होता
तो जानते कि उसकी आंखों में कई सपने थे
उसके अपने बहुत थे पर उसे दिल से अपना मानने वाले बोहत कम थे
काश की हम में से कोई तो उसके घर पर वक्त पर पहुंचा होता
तो उसने वो डिबेट छोड़ हॉस्पिटल जाना ज़रूरी समझा तो होता ।
- Aadya Tyagi
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